मिथिला में प्रसिद्ध भाई- बहन के अटूट बंधन का पर्व सामा चकेवा (Sama Chakeva) आज सम्पन्न हो गया । मिथिलांचल के मधुबनी, दरभंगा एव एवं अन्य जिलों में इसे धूम धाम से मनाया गया । इसकी शुरुआत छठ के पारण के दिन से हो गयी थी। सभी बहने अपने घर में इस दिन से सामा चकेवा बनाना शुरु कर देती हैं। जो उस दिन से नियमित रात्रि के समय आंगन में बैठ कर खूब खेलती हैं, नियमित गीत गाती हैं। जिसमें भगवती गीत, ब्राम्हण गीत और अंत में बेटी विदाई का समदाउन गाती हैं। यह सिलसिला कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक चलता है। उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा का विसर्जन किया जाता है।
कैसे मनाया जाता है सामाचकेवा
मिथिला के लोक पर्व और विभिन्न त्योहारों की जानकार समाजसेवी श्रीमती किरण पाठक ने बताया कि इस पर्व को मिथिला में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इस पर्व को बहन अपने भाई की दीर्घायु होने की कामना के लिए करती है । इसमें बहन-भाई के बीच प्यार का रिस्ता मजबूत होता है । कार्तिक माह के पंचम शुक्ल पक्ष तिथि से सामा चकेवा के मूर्ति की खरीदारी होती है ।यह त्यौहार पंचमी से पूर्णिमा तक आयोजित होता है । विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक घर में इस पर्व को मनाया जाता है ।
इस पर्व की मान्यता
मान्यता है कि सामा चकेवा के उत्सव का सम्बन्ध सामा की दु:ख भरी कहानी से है। भगवान कृष्ण की पुत्री सामा के चरित्र पर एक दुष्ट प्रवृत्ति के इंसान ने गलत आरोप लगाया था । भगवान कृष्ण को इस बात पर क्रोध आया था और उन्होंने सामा को पक्षी बनने का श्राप दे दिया था । इससे दुखी होकर भाई चकेवा ने सामा को वापस मानव रूप में लाने के लिए घोर तपस्या की और सामा फिर से मानव शरीर में लौट सकी । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सामा और चकेवा के लिए ही बहनें अपनी भाइयों के लिए यह पर्व मनाती आ रही हैं ।